pamp
पम्प एक यांत्रिक युक्ति है जो गैसों व द्रवों को धकेलकर विस्थापित करने के काम आती है। दूसरे शब्दों में, पम्प तरल को कम दाब के स्थान से अधिक दाब के स्थान पर धकेलने का काम करता है।
पंप बहुत प्राचीन काल से ही निम्न धरातल पर भरे हुए, अथवा बहते हुए, पानी का उदंचन (पम्पिंग) कर ऊँचे धरातल पर लाने के लिए अनेक प्रकार के उपकरणों और साधनों का व्यवहार किया जाता रहा है। आधुनिक युग के विविध कार्यक्षेत्रों में नाना प्रकार के तरल पदार्थों का उदंचन करके उन्हें स्थानांतरित करने के लिए एक विशेष साधन का अनिवार्यत: उपयोग करना पड़ता है, जिसे पंप कहते हैं।
पंपों की प्राविधि मापें और परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं :
स्थैतिक चूषणोत्थापन (Static Suction Lift) - कोई पंप किसी द्रव को उसे प्राथमिक तल से जितना ऊँचा उठा सकता है वह ऊँचाई उस पंप का चूषणोत्थापन कहलाती है। यह द्रव के संग्रहस्थान में द्रव के ऊपरी तल से पंप के सिलिंडर की मध्य रेखा तक मानी जाती है।
चूषण शीर्ष (Suction Head) - जब पंप को उसके स्थैतिक चूषणोत्थापन के तल से नीचे लगाया जाता है, तब ऊपर बचे हुए उत्थापनांश के अनुपात से चूषण नल में तरल पदार्थ की जो कुछ दाब होगी वह चूषण शीर्ष कहलाती है।
स्थैतिक निकास शीरष (Static Delivery Head) - पंप के सिलिंडर की मध्य रेखा से निकास नल के खुले मुँह की ऊर्ध्वाधर दूरी को स्थैतिक निकास शीर्ष कहते हैं।
घर्षण शीर्ष (Friction Head) - तरल पदार्थ के निष्कासन से संबंध रखनेवाले पंपीय नलों में जो प्रवाहजनित धर्षण होता है, उसके प्रतिरोध समतुल्यशीर्ष को घर्षण शीर्ष कहते हैं।
वेगात्मक शीर्ष (Velocity Head) - निष्कासन नलों में तरल पदार्थ का प्रवाह बनाए रखने के लिए दबाव के रूप में जितने शीर्ष की आवश्यकता होती है उसे वेगात्मक शीर्ष कहते हैं।
संपूर्ण स्थैतिक शीर्ष (Total Static Head) - द्रव संग्राहक में द्रव के ऊपरी तल के निकास नल के मुँह तक की संपूर्ण ऊर्ध्वाधर दूरी को संपूर्ण स्थैतिक शीर्ष कहते हैं।
समग्र शीर्ष (Total Head) - चूषण द्वार और निकास द्वार पर होनेवाली दाबों का अंतर समग्र शीर्ष कहलाता है।
जब किसी पंप को लगाने की योजना बनाई जाती है तब उपर्युक्त सभी शीर्षों की मात्रा पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।
'Valveless pumps
धनात्मक विस्थापन पंप - धनात्मक विस्थापन पंप द्रव की एक निश्चित राशि को ग्रहण करके निर्वहन पाइप में विस्थापित करता है। कुछ धनात्मक विस्थापन पंप चूषण पक्ष पर एक विस्तार गुहा और निर्वहन तरफ घटते गुहा का उपयोग करते हैं। चूषण पक्ष पर गुहा विस्तारीत होने के कारण पंप में तरल प्रवाह करता है (कम दाब पर) और तरल बाहर गुहा से निकलता है जहा का गुहा का आकार कम होता है तथा दाब अधिक होता है। आपरेशन के प्रत्येक चक्र मे तरल कि दी गई मात्रा स्थिर होती है।
कोई भी द्रव पंप में तब तक स्वत: बहकर नीचे से ऊपर की ओर नहीं आ सकता, जब तक चूषण प्रणाली से हवा अथवा उस द्रव की वाष्प (vapour) को बाहर नहीं निकाल दिया जाता, जिससे भीतर का दाब बाहर की दाब से कम हो जाय। चालू किए जाने पर प्रत्यागामी पम्प और घूर्णी पंप स्वत: ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर देते हैं, किंतु अपकेंद्री पम्प ऐसा नहीं कर सकते। उनके लिए आवश्यक है कि उदंधित (पम्प) किया जानेवाला द्रव उनकी पहली पंखुड़ी तक भरा हो, तभी ये अपकेंद्री जल के द्वारा उस द्रव को गति प्रदान कर उसमें बहाव उत्पन्न कर सकते हैं। इसी कारण उन्हें धनात्मक उद्वाह पर लगाना आवश्यक हो जाता है, लेकिन ऐसा करना व्यवहार में सदैव साध्य नहीं होता। अत: उनके चूषण नल में से हवा आदि को निकालकर निर्वात करने के लिए जिन प्रयुक्तियों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें अपक्रामण प्रयुक्ति कहते हैं। कई पंपों में इस प्रकार की प्रयुक्तियाँ उसी के मुख्य अंग में बनी होती हैं। इस कारण उन्हें स्वापक्रामण पंप कहते हैं। कई पंपों में ये अलग से लगाई जाती अथवा की जाती हैं। कई पंपों में तो यह काम वाष्पचालित वायुनिर्वातक से होता है और कई में यंत्रचालित निर्वातक पंप से किया जाता है, जो उसी पंप की मोटर से पट्टे द्वारा चलाया जाता है। इस प्रकार के निर्वातक का प्रयोग करते समय पंप की धुरी में कुछ अंतराल (clearance) रखा जाता है, क्योंकि जब तक चूषण प्रणाली की सारी हवा नहीं निकल जाती तब तक पंप के पखे को व्यर्थ ही सूखा चलना पड़ता है। ये यंत्र भी तीन प्रकार के होते हैं, प्रथम तो पिस्टनयुक्त प्रत्यागामी, दूसरे नियत क्रियांगी घूर्णनी प्रकार के (positive action rotary type), जो अलग पंखें के रूप में होते हैं और तीसरे घूर्णनी द्रव कुंडलीयुक्त, जिन्हें चालू करने के पहले उनकी कुंडली में थोड़ा पानी भरना होता है।